Sunday, May 29, 2011

दारुण दाघ निदाघ

 र्मी का मौसम सिर्फ पारे के चढ़ने का ही मौसम नहीं है | यह मौसम है गर्मी की तपन से बेहाल शेर और बकरी को एक ही घाट पानी पिला देनेवाले और एक ही पेड़ तले छहाने के लिए रोक  देने वाले दिनों का भी| इस लिहाज़ से गर्मी बेहतर मौसम कहा जा सकता है कि इसकी आगोश  में आकर अमीर और गरीब का फर्क मिट जाता है - जाड़े का इलाज़ है गर्म कपड़ा,जिसकी बहुतायत सिर्फ उन्ही लोगों के लिए मुमकिन है, जिनकी जेबें चांदी की खनक से गूंजती हों, लेकिन गर्मी उस गरीब आदमी को भी अपनी गोद में लेने से गुरेज नहीं करती, जो न हो कमीज़ तो पांवों से ही पेट ढक लेने को मजबूर है, लेकिन गर्मी का आगोश मौत का आगोश भी साबित होता है-खासकर उन लोगों के लिए जिनके पास छतें  नहीं होती-जिनके पेट में दाने नहीं होते, गर्मी की तपन भरी अंधड़ उन्हें कुछ ज्यादा ही परेशां भी करती है, हिंदुस्तान  जैसे   गरीब देश   के लिए गर्मी का मौसम लू  से होने वाली मौतों का जैसे एक विस्तृत शमशान सा बन जाता है, हालाँकि अपने जलवायु के हिसाब से हिंदुस्तान गर्म देश है,  इस नाते गर्मी को बर्दाश्त करने की क्षमता आम भारतीय आदमी में किसी ठन्डे मुल्क के बाशिंदे के मुकाबले कंही ज्यादा होती है, लेकिन जैसे किसी भी चीज़ की सहनशीलता की एक निश्चित सीमा होती है, उसी तरह हिन्दुस्तानी आम आदमी की भी सहनशीलता गर्मी को झेलने की निस्बत| सूरज के चारों तरफ घूमती धरती के नियम के कारण हर साल गर्मी आती है और इसी के साथ शुरू होता है लू के थपेड़ों से सुनी होती मांगों का सिलसिला, उजडती गोदों का सिलसिला और पथराये नयनों से जुड़े हाथों की छिनती लाठी का सिलसिला| मौतों का अंतहीन क्रम अब हमारे समाज की ऐसी नियति  बन चुका है कि आम सड़क दुर्घटना से मरने वाली एक जान की खातिर ढेरों शोक  संदेशों की झड़ी लग जाती है और शुरू हो जाता है इस अध्ययन का दौर कि मौत आखिर हुई तो क्यों ?- ताकि फिर इस तरह किसी की मौत से बचा जा सके, लेकिन मौसम के चलते होनेवाली आए दिन की ऐसी मौत महज़ 'रूटीन मौत' बन जाती है और उभरती है अखबार के पन्नों में छोटी-मोटी भरान ख़बरों (फिलर न्यूज़) के तौर पर, लेकिन कभी  ऐसी मौतों का सिलसिला रोकने के बारे में कोई वैज्ञानिक पहल नहीं होती, हमारे समाज के प्रति हमारी इमानदारी पर निश्चित ही यह स्थिति  सवालिया निशान टांकती है, इससे उबरे बिना भारतीय समाज यह कह सकने के काबिल न हो पायेगा कि अपने समाज से उसका जुडाव मानवीय धराताल पर है |

1 comment:

  1. ऐसे ही कुछ न कुछ लिखते रंहो , वाराणासी पर लिखो मार्केट भी कर सकते हो

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